जैसाकि हम सभी जानते हैं कि कोरोना ने पूरी दुनिया में तबाही मचा रखी है| इस महामारी ने दुनिया के सभी देशो के साथ भारत देश में भी कोहराम मचा रखा है| इससे देश की अर्थव्यवस्था पर गहन प्रभाव पड़ा है|
भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 21 मार्च 2020 को एक दिन का देश में जनताकर्फ्यू लगा दिया था उसके बाद प्रधानमंत्री ने 24 मार्च 2020 को देश में संपूर्ण लॉकडाउन का ऐलान कर दिया जो 7 जून तक चला| इस समय अंतराल में केवल आवश्यक सेवाएं ही जारी रही जैसे खाने-पीने की वस्तुओ का क्रय-विक्रय तथा स्वास्थ्य सम्बंधित सेवाएं| 8 जून से अनलॉक -1 का ऐलान किया गया| 2.5 महीने के लॉकडाउन ने मध्यमवर्गीय तथा निम्नवर्गीय लोगो पर ख़ास ही प्रभाव डाला| इस महामारी की सबसे बड़ी मार आम आदमी पर पड़ी हैं| लोगो के सामने रोजगार की समस्या उत्पन्न हो गयी, खासतौर से मजदूरवर्ग| जो मजदूर वर्ग अपने गाँवों से शहर यह सोच कर आते है कि वह शहर में कार्य करके अपना और अपने परिवार का जीवन यापन करेंगे उन्ही मजदूर वर्ग के सामने रोजगार की समस्या उत्पन्न हो गयी| आमदनी के साधन बंद होने से तथा भुखमरी की कगार पर पहुंचे मजदूर मजबूरन अपने गाँवों तक जाने के लिए पैदल ही पलायन को मजबूर हो गये क्योंकि लॉकडाउन की वजह से सभी यातायात सेवाएं बंद कर दी गयी थी| हालाँकि सरकार के द्वारा भी मजदूरों तथा गरीब तबके के लोगो को अनाज देने की व्यवस्था दी गयी| जिन मध्यमवर्गीय तथा निम्नवर्गीय लोगो के राशन कार्ड नही बने थे उन्हें भी बिना राशन कार्ड के सरकार द्वारा अनाज वितरित करने का फैसला लिया गया| मार्च से शुरू हुए इस निशुल्क अनाज वितरण को सरकार द्वारा मार्च से नवम्बर तक चलाया जा रहा है| हालाँकि सरकार महीने में दो बार ये निशुल्क अनाज जिसमे गेहूं, चावल, नमक और चना शामिल है, बाँट रही है|
· पर क्या केवल ये सुविधाएँ आम जनता के लिए काफी हैं?
· क्या केवल इन अनाजो का वितरण ही निम्नवर्गीय और मध्यमवर्गीय के लिए काफी है?
· किसी भी व्यक्ति को जीवन- यापन के लिए तीन मूलभूत वस्तुओं की आवश्यकता होती है-जो है रोटी,कपड़ा और मकान| रोटी की कमी तो सरकार कुछ हद तक पूरा कर रही है पर क्या केवल गेहूं, चावल से आदमी साल भर जीवन यापन कर सकता है?
· आम आदमी को रोजगार की जरुरत तो पड़ेगी ही, अगर आम आदमी ने रोटी, चावल बना लिया तो सब्जी कहाँ से लायेगा, दाले कहाँ से लायेगा?
· कोई व्यक्ति बीमार होता है वो दवाई खरीदने के लिए पैसे कहाँ से लायेगा?
भारत में लगभग 49.80 प्रतिशत मजदूर देश में है| इन सभी को जीवन यापन की समस्या का सामना करना पढ़ रहा है| खेतो में काम करने के लिए किसानो को इस महामारी के चक्कर में मजदूर नही मिल रहे है जिससे समय पर खेतो में तैयार फसल कट नहीं पा रही है जिससे फसले ख़राब हो रही है| अब क्योंकि ये बरसात का मौसम है तो हर जगह भारी बारिश हो रही है जो खेतो में तैयार फसल को बर्बाद कर रही है इससे किसान वर्ग भी जीवन यापन की समस्या का सामना कर रहा है|
अब बात करते है मध्यमवर्गीय व्यक्ति की, जिस प्रकार निम्नवर्गीय व्यक्ति पर इस महामारी ने आर्थिक रूप से बहुत प्रभाव पड़ा है उसी प्रकार इस महामारी का मध्यमवर्गीय व्यक्ति पर भी प्रभाव पड़ा है| मध्यमवर्गीय व्यक्ति इस महामारी से सबसे ज्यादा प्रभावित हा है| मध्यमवर्गीय व्यक्ति, खासतौर से लघु उद्योग और प्राइवेट नौकरी वाला व्यक्ति इस महामारी के कारण आर्थिक मार झेल रहा है| कई प्राइवेट कम्पनियां बंद होने की कगार पर पहुँच गयी है| कंपनियां अपने यहाँ काम करने वाले कर्मचारियों को नौकरी से निकाल रही है क्योकि आर्थिक मंदी के कारण वह अपने यहाँ के कर्मचारियों को सैलरी देने में असमर्थ है| कंपनियों की आय ना के बराबर होने से कंपनियां अपने कर्मचारियों को सैलरी नही दे पा रही है|
जहां एक ओर प्राइवेट कंपनियों पर महामारी ने प्रहार किया है वहीँ दूसरी ओर बिज़नेस वालो पर भी इसका ख़ासकर प्रभाव पड़ा है| इसी प्रकार व्यापारियों की बात करे तो व्यापारी भी अपने यहाँ काम करने वाले कर्मचारियों को काम से निकल रहा है क्योकि जब व्यापारी की खुद की आय नही हो पा रही है तो वह अपने कर्मचारी को तनख्वाह कहाँ से देगा? सभी व्यक्तियों पर आर्थिक तंगी होने से आम व्यक्ति भी अब सिर्फ जरुरी समान ही खरीद रहा है| जिससे हर प्रकार का दुकानदार प्रभावित हो रहा है| इस तरह से हर व्यक्ति आर्थिक मंदी की मार झेल रहा है|
एक रिपोर्ट के अनुसार देश को संपूर्ण लॉकडाउन में से प्रतिदिन 32000 करोड़ का आर्थिक नुकसान हुआ है|
इस लॉकडाउन ने उद्योग जगत को भी ख़ास ही नुकसान पहुँचाया है| जहां लॉकडाउन में उत्पादन बंद हुआ है तथा कई खाद्य सामग्री का आयत बंद हुआ है वहीं दूसरी ओर उत्पादन बंद होने से खाद्य सामग्री के मूल्य बढ़ रहे है|
एक ओर जहाँ आम आदमी वैसे ही आर्थिक मंदी का सामना कर रहा है वहीँ दूसरी ओर बढ़ती महंगाई आम आदमी की कमर तोड़ रही है| कुछ लोगो को छोड़ा जाये तो इस लॉकडाउन ने सभी व्यक्तियों पर प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष दोनों रूप से प्रभाव डाला है|
इस महामारी के कारण छात्रों का वार्षिक सत्र भी प्रभावित हो रहा है| कई एग्जाम की प्रवेश परीक्षा रुकी हुई है तथा जिन परीक्षाओं के प्रवेश परीक्षा की तिथि घोषित हो गयी है उसको देने वाले छात्र इस असमंजस में है कि प्रवेश परीक्षा दी जाये या ना दी जाये| अगर वह प्रवेश नहीं देता है तो उसका वार्षिक सत्र पिछड़ जायेगा और अगर देता है तो उसे कोरोना महामारी से संक्रमित होने का डर रहेगा| इस प्रवेश परीक्षा के लिए आवेदन करने वाले कई ऐसे छात्र भी होंगे जो या तो कोरोना संक्रमित होंगे या तो उनके परिवार में कोई व्यक्ति कोरोना संक्रमित होगा तो ऐसे हालात में वह छात्र ये प्रवेश परीक्षाएं नही दे पायेगा| इसलिए ऐसे हालात में किसी भी तरह की प्रवेश परीक्षा आयोजित करना छात्रों के जीवन से खिलवाड़ करेगा|
इसलिए इस मामले में सरकार को चाहिए कि वो किसी भी तरह का शैक्षिक सत्र शुरू ना कर के उसको अगले वर्ष के लिए स्थानांतरित करे| क्योकि जीवन, किसी भी परीक्षा से ज्यादा जरुरी है| परीक्षाएं तो फिर आ जायेंगी पर जिंदगी एक बार ही मिलती है|
इस तरह कोरोना महामारी ने हर व्यक्ति पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष दोनों रूप से प्रभाव डाला है| इसकी मार पूरी दुनिया झेल रही है|
इन सब समस्याओं के बाद कुछ सवाल है जो जनता सरकार से पूछना चाहती है-
1) जिन छोटे तथा मध्यम व्यापारियों की इस लॉकडाउन में 3 महीने दुकाने बंद रही तो उनको बिजली के बिल क्यों भेजे गए जबकि सरकार जानती है कि इन लॉकडाउन में बंदी की वजह से जनता की आय बंद हो गयी है?
2) जो स्कूल वाले फीस के नाम पर अभिभावक से फीस वसूली कर रहे है जनता वो फीस कहाँ से देगी जबकि उसकी खुद आय नही हो पा रही है?
3) जिन मध्यमवर्गीय व्यक्तियों ने लोन ले रखा है उनके पास इस लॉकडाउन की वजह से खाने का पैसा नही आ पा रहा है तो वह लोन की EMI कैसे भरेगा?
4) जो प्राइवेट अस्पताल कोरोना के इलाज के नाम पर लाखों का बिल बढ़ा रहे है उनपर सरकार कोई सख्ती क्यों नही कर रही है?
5) सरकार द्वारा जो हाउस/ वाटर टैक्स इस वर्ष का लिया जा रहा है उसे सरकार क्यों नही माफ़ कर रही है क्योकि इस समय मध्यमवर्गीय के पास खाने का पैसा नही हो पा रहा है तो वह टैक्स कहाँ से देगा?
6) सरकार ये तो कह रही है कि हमने 1 दिन में इतने कोरोना टेस्ट किये पर उनमे से कितनी रिपोर्ट सही आई है? क्या सरकार ने इसकी जांच के लिए टीम क्यों नही गठित की?
7) अस्पताल तथा कुछ अधिकारियों की मिलीभगत से जो कोरोना नेगेटिव व्यक्ति को भी कोरोना पॉजिटिव बनाया जा रहा है ताकि अस्पताल प्रशासन तथा कुछ अधिकारी सरकार द्वारा प्रत्येक कोरोना संक्रमित के इलाज के लिए देने वाले 1.5 लाख रूपए को वसूल सके| इसकी जांच क्यों नहीं की जा रही है?
8) इन सबके अलावा जो महंगाई बढ़ रही है उसकी रोकथाम के लिए सरकार क्या कदम उठा रही है|
9) हर तरह की वस्तुओं का उत्पादन कम होने से वस्तुओं की मांग बढ़ने पर महंगाई बढ़ रही है उसके निदान के लिए सरकार क्या कदम उठा रही है|
10) मालभाड़ा बढ़ने से हर वस्तुओं के दाम बढ़ रहे है,वह मालभाड़ा सरकार क्यों कम नही कर रही है|
अब बात करते है सरकार् द्वारा 17 मई 2020 को एलान किये 20 लाख करोड़ के राहत पैकेज की| सरकार द्वारा ये एलान किया गया कि इस पैकेज से आम आदमी को राहत मिलेगी पर क्या सचमुच ऐसा हुआ है? क्या सचमुच आम आदमी को राहत मिली है अगर इतनी बड़ी धनराशि सरकार की तरफ से दी गयी है तो इसका इस्तेमाल कहाँ किया गया है? सरकार इस डाटा को क्यों नही बता रही है कि ये पैसे किसको और किस तरह से पहुंचे है|
इससे ये तो निष्कर्ष निकलता है कि भले ही सरकार के द्वारा जनता को पूरी तरह राहत देने का ऐलान किया जा रहा है पर ये राहत जनता तक पहुँच नही पा रही है| जिससे मध्यमवर्गीय आदमी का जीवन यापन करना मुश्किल हो गया है| निम्नवर्गीय व्यक्ति के खाते में तो सरकार पैसे भेज दे रही है जीवन यापन करने के लिए, पर मध्यमवर्गीय व्यक्ति का क्या? उसको तो किसी तरह से कोई राहत नही मिल रही है बल्कि वह हर तरफ से कोरोना के साथ साथ महंगाई और आर्थिक तंगी की मार झेल रहा है|
इस तरह इस कोरोना महामारी से सबसे ज्यादा मध्यमवर्गीय व्यक्ति प्रभावित हुआ हैं|
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