बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी के दोनों बेटों के राजधानी स्थिति अवैध निर्माण को धरासायी करने के एक दिन बाद पिछले शुक्रवार को मऊ में उसके संरक्षण में चल रहे अवैध बूचङखानों पर बुलडोजर चला दिया गया। यहां से मांस और खाल की सप्लाई की जाती थी। जिलाधिकारी ज्ञान प्रकाश त्रिपाठी ने बताया कि मुख़्तार गैंग से ताल्लुक रखने वालों के अवैध निर्माण भी गिराएं जायेंगे। मुख़्तार के सभी साथी जो आपराधिक इतिहास रखते हैं उनकी संपत्ति भी जप्त करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गयी है। आने वाले समय में आजम खान की पत्नी विधायक तजीन फ़तिमा बेटे अब्दुल्ला आजम के नाम से चल रहा रिसॉर्ट भी गिराया जाएगा।
आइए जानतें हैं कौन हैं मुख़्तार अंसारी ?
मुख्तार अंसारी का जन्म यूपी के गाजीपुर जिले में हुआ। राजनीति मुख्तार अंसारी को विरासत में मिली. उनके दादा मुख्तार अहमद अंसारी अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे. जबकि उनके पिता एक कम्युनिस्ट नेता थे. कॉलेज में ही पढ़ाई लिखाई में ठीक मुख्तार ने अपने लिए अलग राह चुनी.
90 के दशक में शुरू किया गैंग 1970 का वो दौर जब पूर्वांचल के विकास के लिए सरकार ने योजनाएं शुरू की. 90 का दशक आते-आते मुख्तार ने जमीन कब्जाने के लिए अपना गैंग शुरू कर लिया. उनके सामने सबसे बड़े दुश्मन की तरह खड़े थे बृजेश सिंह. यहीं से मुख्तार और बृजेश के बीच गैंगवार शुरू हुई.
मुख़्तार अंसारी पिछले 14 सालों से जेल में ही बंद है. मर्डर, किडनैपिंग और एक्सटॉर्शन जैसी दर्जनों संगीन वारदातों के आरोप में मुख्तार अंसारी के खिलाफ 40 से ज़्यादा मुकदमें दर्ज हैं. फिर भी दबंगई इतनी है कि जेल में रहते हुए भी न सिर्फ चुनाव जीतते हैं बल्कि अपने गैंग को भी चलाते हैं. 2005 में मुख्तार अंसारी पर मऊ में हिंसा भड़काने के आरोप लगे. साथ ही जेल में रहते हुए बीजेपी नेता कृष्णानंद राय की 7 साथियों समेत हत्या का इल्ज़ाम भी अंसारी के माथे पर लगा.
अपराध की दुनिया में पहला कदम
मुख़्तार का अपराध की दुनिया में पहली बार 1988 में मंडी परिसद की ठेकेदारी को लेकर स्थानीय ठेकेदार सच्चिदानंद राय की हत्या के मामले में नाम आया। हालांकि उनके खिलाफ कोई पुख्ता सबूत पुलिस नहीं जुटा पाई. लेकिन इस बात को लेकर वह चर्चाओं में आ गया. 1990 का दशक में मुख्तार अंसारी जमीनी कारोबार और ठेकों की वजह से अपराध की दुनिया में कदम रख चुका था. पूर्वांचल के मऊ, गाजीपुर, वाराणसी और जौनपुर में उनके नाम का सिक्का चलने लगा था.
राजनीति में पहला कदम
1995 में मुख्तार अंसारी ने राजनीति की मुख्यधारा में कदम रखा. 1996 में मुख्तार अंसारी पहली बार विधान सभा के लिए चुने गए. उसके बाद से ही उन्होंने ब्रजेश सिंह की सत्ता को हिलाना शुरू कर दिया. 2002 आते-आते इन दोनों के गैंग ही पूर्वांचल के सबसे बड़े गिरोह बन गए. इसी दौरान मुख्तार अंसारी के काफिले पर हमला हुआ. दोनों तरफ से गोलीबारी हुई इस हमले में मुख्तार के तीन लोग मारे गए. खबर आई कि ब्रजेश सिंह इस हमले में घायल हो गया. उसके मारे जाने की अफवाह भी उड़ी. इसके बाद बाहुबली मुख्तार अंसारी पूर्वांचल में अकेले गैंग लीडर बनकर उभरे.
इस गैंगवार में ब्रजेश सिंह जिंदा पाए गए और फिर से दोनों के बीच संघर्ष शुरू हो गया. अंसारी के राजनीतिक प्रभाव का मुकाबला करने के लिए ब्रजेश सिंह ने भाजपा नेता कृष्णानंद राय के चुनाव अभियान का समर्थन किया. राय ने 2002 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में मोहम्मदाबाद से मुख्तार अंसारी के भाई और पांच बार के विधायक अफजल अंसारी को हराया था. बाद में मुख्तार अंसारी ने दावा किया कि कृष्णानंद राय ने ब्रजेश सिंह के गिरोह को सरकारी ठेके दिलाने के लिए अपने राजनीतिक कार्यालय का इस्तेमाल किया और उन्हें खत्म करने की योजना बनाई.
ठेकेदारी, खनन, स्क्रैप, शराब, रेलवे ठेकेदारी में अंसारी का कब्ज़ा है. जिसके दम पर उसने अपनी सल्तनत खड़ी की. मुख्तार के समर्थकों का दावा है कि ये रॉबिनहुड अगर अमीरों से लूटता है, तो गरीबों में बांटता भी है. ऐसा मऊ के लोग कहते हैं कि सिर्फ दबंगई ही नहीं बल्कि बतौर विधायक मुख्तार अंसारी ने अपने इलाके में काफी काम किया है. सड़कों, पुलों, अस्पतालों और स्कूल-कॉलेजों पर ये रॉबिनहुड अपनी विधायक निधि से 20 गुना ज़्यादा पैसा खर्च करता है.
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